Wednesday 9 April 2014

क्यूँ सोते हैं

हम पूरी साल सोते हैं।
अब फिर क्यों रोते हैं। 

हमसे अच्छे तो नेता होते हैं
चारा से लेकर, कोयला तक खाते हैं
पुल, तालाब गायब भी करते हैं
फिर भी कपडे सफ़ेद रहते हैं
हम क्यों सोते हैं, क्यों रोते हैं
हमसे अच्छे तो नेता होते हैं

हर बार बड़े बड़े वायदे होते हैं
फिर क्यों बच्चे नंगे रोते हैं
फिर क्यों किसान भूखे सोते हैं
फिर क्यों मजदूर मजबूर होते हैं
क्या इसीलिए बड़े बड़े वायदे करते हैं
हम हर बार रोते हैं, फिर भी सोते हैं

हर बार मतदान होते हैं
हर बार मतदाता होते हैं
कुछ नये, कुछ पुराने होते हैं
पर नेता नहीं बदलते हैं
उनकी भूख ज्यादा होती है,
तो दांत ताजा होते हैं
क्या ऐसे ही मतदाता होते हैं,
जो मत दान करते हैं
हम दान कर सोते हैं, फिर रोते हैं
हमसे अच्छे तो नेता होते हैं

हम भला इससे क्या खोते हैं
हम तो आराम से सोते हैं
और हमारे साथ सभी तो सोते हैं
ठीक है, हमसे अच्छे नेता होते हैं
आखिर वो नेता भी तो होते हैं
हमतो जैसे पैदा हुए थे, वैसे ही मरते हैं

कवि जी कुछ भी करलो, हम ऐसे ही होते हैं।    
कितना भी जोर लगालो, हम ऐसे ही रहते हैं।।   

---किशन सर्वप्रिय 

Tuesday 8 April 2014

दान कर मत दान

मतदान से डरकर जिंदगी पार नहीं होती।
संसद वालों की कभी हार नहीं होती।।

संसद सदन में कभी न चलती है।
घोटालों में सौ बार फिसलती है।
युवा जोश रगों में साहस भरता है।
बेटा का बेटा, उसका बेटा भी न अखरता है।
बेईमान संसद हर बार नहीं होती।
संसद वालों की कभी हार नहीं होती।।

हल फाबड़ा बंजर में किसान चलाता है।
लेकिन हर बार, रह खाली हाथ जाता है।
मिलता न सहज ही अन्न कम पानी में।
बढ़ता दूना आक्रोश इसी हैरानी में।
फिर भी घोटालों कि भरमार किस बार नहीं होती।
संसद वालों की कभी हार नहीं होती।।

संसद, सरकार एक चुनौती है स्वीकार करो।
क्या कमी रह गयी, अबतो बहिष्कार करो।
जब तक अपराधी हैं, वोट न डालो तुम।
'नोटा' दबाओ, मतदान से न भागो तुम।
कुछ किये विना ही जनता जिम्मेदार नहीं होती।
संसद वालों की कभी हार नहीं होती।।  

                        --- किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...