अफ़सोश होता है
इसमें कतई कोई दोहराय नहीं कि महिलाएं घर का पूरा कार्य करती हैं। वे घर, सास-ससुर, पति, एवम बच्चों की पूरी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाती हैं। पति,पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान हैं, जिनका की घर चलाने में बिल्कुल बराबर महत्व है।
अगर कोई पुरुष फ़िजूल कार्यों में समय या पैसों को बर्बाद करता है तो निसंदेह ग़लत बात है। लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना की पुरुष घर के कार्यों में हाथ बटाने में शर्म महसूस करता है, अपरिपक्व समझ होगी। मैं फ़िजूल कार्यों में व्यस्त लोगों का समर्थन तो नहीं कर रहा हूँ। लेकिन घरेलू कार्यों का विभाजन वैज्ञानिक पध्दति से किया हुआ एवम समय परीक्षित, उपयोगी व सही है। अर्थात घरेलू कार्यों को स्त्री-पुरुष के बीच में बांट लेने का समर्थक हूँ।
ग्रामीण क्षेत्रों में, कार्यों का विभाजन स्त्री-पुरुष की शारीरिक क्षमताओं को ध्यान में रखकर किया गया होगा, जो की आज भी लगभग एक जैसा बना हुआ है। कार्यों के विभाजन को किसी कार्यालय या फैक्टरी की कार्य पध्दति से आसानी से समझ सकते हैं, कि कैसे किसी विशेष काम को एक विशेष व्यक्ति ही करता है। ताकि ग़लतफहमी की कोई गुंजाइश रहे ही नहीं।
गाँव में भी, अगर किसी परिस्थिति का अध्ययन करोगे तो पाओगे की कार्य विभाजन आवश्यक है। जैसे अचानक बरसात हो जाए तो, बच्चे तार पर से सूख रहे कपड़े समेटेंगे, महिला ईंधन अंदर रखेगी व चूल्हा ढकेगी, एवम पुरुष चारपाइयों को अंदर रखेंगे। अगर इस तरह की समझ नही है, तो महिला एक ही चारपाई अंदर रख पाएगी, और बाकी भीग सकती हैं। पुरुष ईंधन अंदर रखेगा, लेकिन चूल्हा ढकना भूल सकता है। ऐसे ही पुरुष कुँआ के खेत पर फसल काट रहा होगा, महिला लहकोड के खेत पर चारा काट रही होगी। और बच्चे बगैर खाने के तिलमिला रहे होंगे। मतलब सब कनफ़ूजिया जाएँगे। याद रहे की मोबाइल फोन 21वीं सदी की देन है, जहाँ आप फोन पर बात कर निर्धारित कर सकते हैं या जान सकते हैं, की कौन क्या काम कर रहा है और करेगा।
हाँ, लेकिन इस बदलते समय में जहाँ तकनीकें बदल रहीं हैं, तो सामाजिक पारिवारिक पध्दतियों का बदलना स्वाभाविक है। स्त्री-पुरुष की घर में भूमिका पुन:निर्धारित करना महती आवश्यक है। बाकी रही फ़िजूल कार्यों में व्यस्त लोगों की बात, तो उसमें हमें स्त्री-पुरुष का भेद नही करना चाहिए।
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