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पता नहीं क्यूँ वो रातें, खास हुआ करती थी।
जब दोस्तों के साथ, दोस्ती मिला करती थी।।
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आजकल तो सिर्फ दारू मिलती है
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मैं देखता रहा उसकी सूरत।
जिसकी दिल में बसी थी मूरत।।
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एक ज़माना था
जब हम ही हम हुआ करते थे,
नंगे पैर काँटों पर चला करते थे।
आज तेरी गली से भी दबे पाँव निकलते हैं ।।
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आजकल
कुछ यूँ कहो कि हम किस्मत पर भारी हैं।
तीर लगे तो खिलाडी, वर्ना अनाडी हैं।।
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इश्क का आलम ऐसा कि,
मोहब्बत-ए-जुर्म किये जा रहा हूँ,
दवा-ए-दारू पिये जा रहा हूँ।।
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मैं इन बडे लोगों की
महफिल में क्या कहूँ।
जाम पीना मुझे आता नही।
खाली बातें मैं बनाता नही।
जो करता हूँ, करते जाता हूँ।
विना पंख उडना, मुझे आता नही।।
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हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...