Wednesday 20 August 2014

जिसने हर पल मुझे रुलाया

क्या करूँ इबादत उसकी,
जिसने मुझे बनाया।
या करूँ इबादत उसकी,
जिसने जीना मुझे सिखाया।
पर क्या करूँ मैं तेरा,
जिसने हर पल मुझे रुलाया।


जब मैं इस दुनिया में आया
तुझको अपने ही घर में पाया
तूने माँ-पा को बहुत सताया
भाई बहिन को भी खूब रुलाया
कोई न तेरे सामने टिक पाया।

तूने जिस घर में पैर जमाया है
मुस्किल से ही कोई हटा पाया है
आज हम सब की बारी आयी है
नयी सरकार ने नयी उम्मीद जगाई है।

उम्मीद के बादल क्या बरस पाएंगे
क्या थार की प्यास बुझा पाएंगे
ये तो हम सब तब ही जान पाएंगे
जब कैक्टस की जड उखाड़ पाएंगे।

कोशिश हम तुम सब मिलकर करेंगे
तकलीफ थोड़ी हम तुम सब सहेंगे
कुछ कैक्टस तुम तो कुछ हम उखाड़ेंगे
कुछ जड़ों को तुम तो कुछ को हम सींचेंगे
लेकिन इस गरीबी को जरूर मिटायेंगे।
कैसे ?

हम सब को बचपन बचाना होगा
बच्चों को स्लेट थमाना होगा
भूखों को खाना खिलाना होगा
बेरोजगारों को काम दिलाना होगा।

क्या सरकार यह कर पायेगी
मुर्दों को नींद से उठायेगी
भटकों को रास्ता दिखायेगी
वरना गरीबी कैसे मिटायेगी ?

दोस्तों उम्मीद रखना, पर हाथ पर हाथ न रखना
दोस्तों आराम करना, पर थमने का विचार न करना
फिर देखना...
एकदिन गरीबी जरूर भाग जाएगी,
और हम सब की मेहनत रंग लाएगी।।

                    ---किशन सर्वप्रिय 

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