Wednesday 20 August 2014

अबला बेचारी

यारों मैं जाग रहा हूँ, तुम सो रहे हो।
यारों मैं रो रहा हूँ, तुम हँस रहे हो।
आज सीख एक तुमको लेनी होगी
ऐसी गलती तुमको न करनी होगी।


आज मेरा रोना भले ही तुम्हे समझ न आये
फिर भी न समझ बुद्धू ही ये गलती दोहराये
जो पागल इस गहरे समुन्दर में फंस जाये
वो जिंदगी भर अपनी मुंडी ही हिला पाये।

ये बला चाहे नाकों चने चबवाये
फिर भी अबला नारी कहलाये
इसके सामने जो कोई आये
उसकी बोलती बंद हो जाये।

ये अबला बिचारी पल पल में रूठ जाये
हमें रूठने का कारण समझ भी न आये
इसे पूरी रात क्या समझाये क्या मनाये
हमें जगाने में फिर रूठने से समझ आये।

शायद तुमने कांटे का दर्द सहा होगा
शायद जहर भी आजमा लिया होगा
मगर इसका कांटा कभी न निकलेगा
तू जीलेगा अगर हँस के जहर पी लेगा।

No comments:

Post a Comment

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...