Monday 1 September 2014

तेरी रूश्वाई

तेरी रूश्वाई से तन्हा दिल,
अकेला भटकता रहा।
जुर्म हमदर्द के, तन्हा सहता रहा।
हमसे इतनी बेरुखी किस लिए,
दर्द-ए-सितम हमने भी तो सहे।

दिल-ए-दर्द काश आँखों से कम होता,
तो आँखें नम, हम भी कर लेते।
जख्म-ए-दिल ख़ुशी से सह लेते।

काश दिल-ए-जख्मों पर मरहम तुम लगाती।
कभी तो मेरे टूटे दिल को समझाती।
शायद हमारी तुम्हारी भी कहानी बन पाती।

शायद मेरा प्यार ही झूठा था,
जो रात-ए-बेचैनी तुम पढ़ न पायी।
टूटते दिल की आवाज सुन न पायी।
डूब गया ये दिल,
उन बरसात की टिप-टिप बूंदों में
जो ठीक से बरस भी न पायी।

जब तेरे आँसू मेरे जनाजे पर निकलेंगे,
तो उनकी कोई कीमत न होगी।
फिर भी हम कोशिश करेंगे लौट आने की,
पर किसे पता, ख़ुदा-ए-मर्जी क्या होगी। …

             ---किशन सर्वप्रिय 

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