Monday 26 May 2014

रिश्तों की चरखी

न जाने जिंदगी में देखे कितने मेले हैं
हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले हैं।

रिश्तों की चाह में, जिंदगी की राह में
जीने की आशा में, अंत की निराशा में
न जाने कौन-कौनसे खेल हमने खेले हैं
हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले हैं।

कभी माँ के दुलार के लिए
तो कभी पा के प्यार के लिए
हम तरसे हैं, तो अश्रु बरसे हैं
हमने दोस्तों के विना ही कंचे खेले हैं
हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले हैं।

पल का पड़ाव, समय का झुकाव
हमारे साथ कभी न था
कभी हम समय से पीछे थे
तो कभी समय नींद में था
समय के थपेड़े हमने भी झेले हैं
हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले हैं।

कल तलक तन्हाई थी,
फिर बजी शहनाई,
आज फिर क्यों रूश्वाई है
अनन्त में घनघोर घटा छाई है
गुरु गुड रह गए, हम उस स्कूल के चेले हैं
हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले हैं।

न जाने जिंदगी में देखे कितने मेले हैं
हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले हैं।

तन्हाई से मिलन, मिलन से तन्हाई अच्छी होती है
सच्चे रिश्तों की डोर पतली और कच्ची होती है,
ढील नाप तोल के देना यारो, रिश्तों की चरखी छोटी होती है।

                                    -किशन सर्वप्रिय

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