Tuesday, 10 June 2014

मैं इंसान

मैं इंसान
विना पहचान
दुनिया से अंजान
निकला हूँ।


बहुत नहीं तो
थोड़ा जिक्र
मेरा भी करना।
रहम नहीं तो
मरहम ही करना।
दवा नहीं तो
दुआ ही करना
क्यूंकि

मैं दरिया
मैं समुन्दर
मैं घड़ियाल तो नहीं,
जो तुझे निगल जाऊंगा।

मैं बारूद
मैं लावा
मैं नफ़रत तो नहीं,
जो तुझे जला दूंगा।

मैं  भूख
मैं चिंता
मैं अँधेरा तो नहीं,
जो तुझे खा लूंगा।

मैं खुशबु
मैं धुन
मैं छल तो नहीं,
जो तुझे मोह लूंगा।

मैं गरीबी
मैं बीमारी
मैं बेरोजगारी तो नहीं,
जो तुझे हरा दूंगा।

मैं नेता
मैं बाबू
मैं दादा तो नहीं,
जो तुझे डरा दूंगा।

मैं लहर
मैं नौका
मैं पतवार तो नहीं,
जो तुझे बचा लूंगा।

मैं इंसान
विना पहचान
दुनिया से अंजान
निकला हूँ।

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