Friday 8 August 2014

Truth of Dreaming in Darkness

सुबह जब पलकों से नींद उडी,
पहली नजर धर्मपत्नी पर पड़ी।
हाथ में चाय लिए सामने थी खड़ी।
प्राणनाथ जरा चाय पी लीजिए,
फिर उठके नहा लीजिए।


आज बाल्टी से नहीं
नल से पानी आ रहा था,
जैसे नहाने के लिए बुला रहा था।
तबियत से नहाये,
पानी खूब बहाये।
फिर जाके आज स्कूटर नहीं
कार उठाये।
पेट्रोल से फुल गाड़ी चल पड़ी।
चिकने रोड पर फिसल पड़ी।
आज गड्डे में कार,
कार में पानी,
पानी में गड्डा नहीं था।
आज ऑफिस में चेम्बर,
चेम्बर में सेक्रेटरी,
सेक्रेटरी का पॉकेट फुल था।

सेक्रेटरी ने फाइल दिखाई,
फिर धीमे से मुस्कराई,
हमने तुरंत कॉफ़ी मंगवाई।
मन तो कॉफ़ी शेयर करने का था,
लेकिन अपनी टाई याद आई।
मन की समस्या तो सुलझ गई,
पर नजरों की गुत्थी उलझ गई,
आँखों की बात दिल तक पहुँच गई।
एक तो साला करेक्टर ढीला,
ऊपर से रासलीला,
मन को भड़का रहे थे,
तन को सुलगा रहे थे।
कुछ कुछ होने लगा था.…

पर धर्मपत्नी ने फावड़ा थमा दिया,
नींद से जगा दिया,
लम्बा चौडा भाषण सुना दिया।
ऐ जी- सुनते हो
काम पे जो जाना है,
दो रोटी जो कमाना है।
फिर छः बच्चों में बाँट,
चौथाई रोटी ही खाना है।
सुनके चेहरे पर मायूसी छा गई,
बीबी प्यार से सिर हिला गई।

नल का पानी जा चुका था,
नहाने के लिए एक बाल्टी ही मिला था।
स्कूटर वर्षों से जंग खा रहा था,
मेरा क्या, अपना बोझा भी नहीं
उठा पा रहा था।
दस किलोमीटर पैदल ही चल पड़े,
शहर के नुक्कड़ पर, चार घण्टे खड़े रहे।
फिर जाके आधे दिन का काम दिलवाया,
उस पर भी 25% कमीशन मुकादम ने खाया।

आज मैं दो रोटी नहीं,
एक रोटी ही कमा पाया,
थका हारा जब घर लौट के आया,
तो बच्चों को भूख से बिलखता पाया।
एक निवाला रोटी, दो गिलास पानी,
क्या पेट की भूख मिटा पाया ?
मैं तो नहीं जान पाया!!!

हे भगवान! क्या है तेरी माया?????????
किसी को हँसाया तो किसी को रुलाया??

---किशन सर्वप्रिय  

1 comment:

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