इस चार दिवारी के अंदर
पता नही होता है क्या क्या।
हर पल बदलते
मौसम इसके अंदर,
उथल पुथल करता
समुन्दर इसके अंदर,
समुन्दर से भी प्यासा
बंजर मरुस्थल इसके अंदर
हर पल को समेटे
यादों का मंजर इसके अंंदर।।
---किशन सर्वप्रिय
पता नही होता है क्या क्या।
हर पल बदलते
मौसम इसके अंदर,
उथल पुथल करता
समुन्दर इसके अंदर,
समुन्दर से भी प्यासा
बंजर मरुस्थल इसके अंदर
हर पल को समेटे
यादों का मंजर इसके अंंदर।।
---किशन सर्वप्रिय
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