Tuesday 26 June 2018

हर पल बदलते, मौसम इसके अंदर

इस चार दिवारी के अंदर
पता नही होता है क्या क्या।

हर पल बदलते
    मौसम इसके अंदर,
उथल पुथल करता
    समुन्दर इसके अंदर,
समुन्दर से भी प्यासा
    बंजर मरुस्थल इसके अंदर
हर पल को समेटे
    यादों का मंजर इसके अंंदर।।

---किशन सर्वप्रिय 

No comments:

Post a Comment

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...