Sunday 14 December 2014

इश्क़ का आलम

जब तुम जा रहे थे
हम मुस्कुरा रहे थे
तुम्हारे जाने का गम भुला रहे थे
दिल को दारू पिला रहे थे।।

दिल-ए-गुलज़ार खिला हुआ था
जब साथ उसका मिला हुआ था।
आज दिल के टुकड़े किये जा रहा हूँ
आंसू-ए-गम पिये जा रहा हूँ।।

अब इश्क़ का आलम ऐसा, कि
मोहब्बत-ए-जुर्म किये जा रहा हूँ
दवा-ए-दारू पिये जा रहा हूँ।।

महफ़िल में उसके, मैं गाये जा रहा हूँ
दरिया में अश्रु, बहाये जा रहा हूँ।
गम जो तूने दिये, तुझे सुनाये जा रहा हूँ।

       ---किशन सर्वप्रिय 

तेरे लिए

खत लिखते लिखते,
लिखना सीख गया मैं
तेरा नाम तो याद रहा,
अपना भूल गया मैं ।।

तेरी बातों पे हँसते हँसते,
हँसना सीख गया मैं
तेरा हँसना तो याद रहा,
अपना भूल गया मैं ।।

तेरा पीछा करते करते,
पीछे रह गया मैं
तेरा रास्ता तो याद रहा,
अपना भूल गया मैं ।।

यूँ गम पीते पीते,
पीना सीख गया मैं
तेरा जीना तो याद रहा,
अपना भूल गया मैं ।।

    ---किशन सर्वप्रिय 

Wednesday 3 December 2014

जीवन सार (1)

मैं उस मंजिल
          की ओर निकला।
जो बहुत दूर लगती थी।
कांटों से भरी लगती थी।
आज छोटी लगती है।।

मैं उस चाहत
         को पाने निकला।
जो जिंदगी लगती थी।
दिल की धड़कन लगती थी।
आज बेगानी लगती है।।

जब मंजिल मिली,
                  मंजिल बदल गयी।
जब चाहत मिली,
                 चाहत बदल गयी।
ये समझते समझते,
                जिंदगी निकल गयी।।

   ---किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...