Sunday 14 December 2014

इश्क़ का आलम

जब तुम जा रहे थे
हम मुस्कुरा रहे थे
तुम्हारे जाने का गम भुला रहे थे
दिल को दारू पिला रहे थे।।

दिल-ए-गुलज़ार खिला हुआ था
जब साथ उसका मिला हुआ था।
आज दिल के टुकड़े किये जा रहा हूँ
आंसू-ए-गम पिये जा रहा हूँ।।

अब इश्क़ का आलम ऐसा, कि
मोहब्बत-ए-जुर्म किये जा रहा हूँ
दवा-ए-दारू पिये जा रहा हूँ।।

महफ़िल में उसके, मैं गाये जा रहा हूँ
दरिया में अश्रु, बहाये जा रहा हूँ।
गम जो तूने दिये, तुझे सुनाये जा रहा हूँ।

       ---किशन सर्वप्रिय 

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