Tuesday 5 July 2016

क्या रखा है समुन्दर के किनारे बैठने में......

देखो
ये भी बैठा है
वो भी बैठा है
समुन्दर के किनारे तो
हर कोई बैठा है।
क्या रखा है बैठने में?
किनारे तो ढह जाते हैं
सपने बह जाते हैं,
बैठने वाले
जिंदगी की दौड़ में
पीछे रह जाते हैं।
लगाना है तो
डुबकी लगाओ
बार बार लगाओ
पूरे मन से लगाओ
गहरे पानी में जाओ
चुन कर मोती लाओ।
मोती जो लायेगा
पार समुन्दर हो जायेगा
वरना
हारा हुआ खिलाड़ी तो
कहलायेगा ही कहलायेगा।
---किशन सर्वप्रिय 

मेरे मन की, विचित्र स्थिति है

किसी की स्कूल में
गणित कैसी भी रही हो,
जिंदगी सब सिखा देती है।
यहाँ तक की,
बचपन की फिलॉसफी भुला देती है।

जो मैं पाठ
पढ़ाया करता था,
जिसकी वकालत
किया करता था,
आज सब
झूंठा झूंठा लगता है,
अब तो मन भी
दोहरे चरित्र पर हँसता है।

जो मैं कहता हूँ ,
वो बिल्कुल भी नही करता हूँ।
और जो करता हूँ,
वो कहने से डरता हूँ।
मेरा मन,
मन ही मन मरता है।
पता नही क्यों,
कहने से डरता है।

जो मंजिल थी,
पता नही कहाँ रह गयी,
कब रास्ता भटक गयी,
अब तो सब दूर दूर लगता है।
मेरा मन,
मन की बातों से ही डरता है।
कहता कुछ और,
कुछ और ही करता है।

मेरे मन की
विचित्र स्थिति है,
जिंदगी खुद भी
मेरे मन पर हंसती है।
पर सोचता हूँ,
शायद सबकी जिंदगी
ऐसे ही गुजरती है।
---किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...