Tuesday 26 June 2018

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं ,
आँखें मेरी।

पता नही, क्यों?
वो मुस्कुराती है
पलके झुकाती है
शरमाती है।।
अपना पता
बताये बगैर ही
चली जाती है।।

और फिर,
हर रोज की तरह
उस वीरान स्टेशन के,
सुनसान प्लेटफार्म पर
छोटे से पेड़ के नीचे
उसको तलाशती 
नजर आती हैं 
आँखें मेरी।

पता नही, क्यों?
हर बार उलझ जाती हैं,
आँखें मेरी।।

--किशन सर्वप्रिय

ऐ हवा... चल, ले चल

ऐ हवा
चल, ले चल
कहीं दूर,
दरिया के किनारे
किस्मत के सहारे
दुनिया से अंजान
वीरान धरा पर
रहंगे
सिर्फ मैं और तू।<br />
---किशन सर्वप्रिय 

मेरे अल्फाज दगा करते हैं।

आते आते जुबां पर
         मेरे अल्फाज दगा करते हैं।
मन कुछ कहता है,
        और जुबां पर कुछ आते हैं।।

---किशन सर्वप्रिय 

लिखने वाले ने तो लिख दी

मुझे नही पता,
ये किस्मत कहाँ ले जाएगी।
लिखने वाले ने तो लिख दी,
पता नही मुझसे क्या करवाएगी।।

---किशन सर्वप्रिय 

हर पल बदलते, मौसम इसके अंदर

इस चार दिवारी के अंदर
पता नही होता है क्या क्या।

हर पल बदलते
    मौसम इसके अंदर,
उथल पुथल करता
    समुन्दर इसके अंदर,
समुन्दर से भी प्यासा
    बंजर मरुस्थल इसके अंदर
हर पल को समेटे
    यादों का मंजर इसके अंंदर।।

---किशन सर्वप्रिय 

ये न समझ चेहरा

लोग पहचान लेते हैं
मुझे मेरे चेहरे से,
छुपा के भी कुछ
छुपा नही पाता
मैं मेरे चेहरे से,

ना जाने क्या
छुपाते हैं ये लोग,
आंखों के परदे
गिराते हैं ये लोग,
मेरा....
ये न समझ चेहरा,
पता नही क्यूँ
समझ नही पाता,
मेरे कहने से पहले ही
बकबक बोल जाता है।

---किशन सर्वप्रिय 

ये अकबरी जिंदगी और उर्वशी चाहत

ये अकबरी जिंदगी
और
उर्वशी चाहत में,
हे मुरली मनोहर
देख
तेरे सुदामा की
क्या हालत हुई है।।
पिंजरे में
तोते की जिंदगी
माल्या हो गयी है।।

---किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...