Tuesday 21 October 2014

मेरा घर, मेरा

एक बन्दर था
चंचल नटखट था 
उछल कूद किया करता था
शहर के किनारे
पेड़ पर रहा करता था
पेड़ की हर डाली,
डाली का हर पत्ता,
उसने खाया था
या तोडा था
पेड़ पर किसी को
न टिकने दिया था
हर रोज आधे दिन
गायब रहा करता था
न जाने क्या
किया करता था।

एक दिन शहर से
लोट रहा था,
तो घर को
खोज रहा था।
घर, पत्ते टहनियों में
बिखरा पड़ा था
परिवार उसका
रोते खड़ा था
चने के दाने,
केला का छिलका,
पानी का घड़ा था
सब जमीन पर पड़ा था।

यह देख, उसे कुछ
समझ नहीं आया
तो माँ ने रोते हुए बताया
न जाने किसकी
नजर लगी थी
सुबह यहाँ
बहुत सारी मशीनें खड़ी थी। 
तुम्हारे बापूजी की डाली
जो सबसे बड़ी थी
पल में नीचे पड़ी थी
जब तक मैं
उनको उठा पाती
दूसरी डाली
नीचे आ जाती।
देखो न
ये चने के दाने
जो मिलकर कमाये थे
ये पानी का घड़ा
जो तुम कल ही लाये थे।

यह सुनकर
बगल में खड़ा
छोटा बन्दर भी रो पड़ा
हे भाई, ये हमने
किसकी कीमत चुकाई
क्यों किसी ने
मेरे घर में आग लगाई
तुम तो कहते थे
शहर में बड़े अच्छे
लोग रहते हैं
पढ़े लिखे होते हैं

बन्दर चुपचाप सुन रहा था
चारों तरफ कृदंत मच रहा था
इतने में जंगल का मुखिया
शेर भी वहां आया
और जोर से गिड़गिड़ाया
मैं किसी को नहीं बचा पाया
मैं किसी को नहीं बचा पाया।
बन्दर बोला-
चुप हो जाओ
कोर्ट जाओ
मुक़दमा दर्ज कराओ।

मुकदमे की तारीख आयी
जज ने आवाज लगायी
शुरू हो कार्यवाही
बन्दर ने मुँह खोला
और कुछ बोला
बीच में जज ने टोका
और बोलने से रोका।
अरे बन्दर-
 यहाँ क़ानूनी बातें होंगी
तुम्हें दलीलें देनी होंगी
क्या तुम दे पाओगे
नहीं तो मुकदमा हार जाओगे।

बन्दर बोला-
मैं कानून जानता हूँ
मुजरिम पहचानता हूँ
चलो, एक बात बताता हूँ।
गाँव से शहर का
मुख्य रास्ता जोड़ना है
जिसके बीच आ रहा
तुम्हारा घर तोडना है
चलो तोड़ देते हैं
और कह देते हैं
यह जरुरी था
पर क्या कानूनन था।

अगर पेड़ काटना है
और जरुरी है, तो
पहले पेड़ लगाओ
घर बनवाओ
फिर मशीन चलाओ।
जज को बात समझ आई
मशीन को सजा सुनाई
जुर्माना तुमको भरना होगा
पहले घर बनाना होगा
फिर पेड़ लगाना होगा। 

-किशन सर्वप्रिय

बहरी सरकार

कुछ न सहेंगे
चुप न रहेंगे
सुन ओ बहरी सरकार

अब लाल मेरे बोलेंगे
निंदिया तेरी तोड़ेंगे
सुन ओ बहरी सरकार

मेरा क्या नाम
तेरा क्या काम
तू जान ले
बात मेरी मान ले
सुन ओ बहरी सरकार

बहुत हो चुकी परीक्षा
क्या है तेरी इच्छा
अब बता दे, वरना
तेरा भी नाम मिट जायेगा ।

---किशन सर्वप्रिय 

Friday 3 October 2014

तेरी याद

वो गली का पेड़,
जो आज भी झुका नहीं ।
वो गली का गड्ढा,
जो आज भी भरा नहीं।
हमें तेरी याद दिलाते हैं।

वो घर की छत, 
जो मेरे सामने थी। 
वो स्कूल का कक्ष, 
जो ख़ाली रहता था। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो कॅाफी का कप,
जो तुमने छुआ था। 
वो लाल सा फूल, 
जो तुमने दिया था।
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो पहला पत्र, 
जो तुमने लिखा था। 
वो पहला वाक्य, 
जो मैंने सुना था।
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो किताब का पन्ना, 
जो तस्वीर तेरी रखता था। 
वो स्याही का पैन, 
जो ख़त लिखा करता था। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो पानी पुरी, 
जो तीखी थी। 
वो प्याज़ कचौड़ी,
जो मीठी थी। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो घड़ी,
जो तेरा इंतज़ार करती थी।
वो बस, 
जो तेरे घर से गुज़रती थी।
हमें तेरी याद दिलाते हैं।

वो बरसात, 
जो हमें भिगो गई। 
वो लहर, 
जो हमें डुबो गई। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो आँधी, 
जो तुम्हें गुमशुदा कर गई।
वो काली रात,
जो हमें अलग कर गई। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो मिट्टी का घर,
जो उस रात बह गया था। 
वो रिश्तों का बंधन,
जो उस रात टूट गया था। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

आज वो,
जो तुम्हारी याद दिलाते हैं। 
हमें अपने पास पाते हैं।
हमारा मन बहलाते हैं।
और हम 
बस यूँ ही जिये जाते हैं।

---किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...