Friday 3 October 2014

तेरी याद

वो गली का पेड़,
जो आज भी झुका नहीं ।
वो गली का गड्ढा,
जो आज भी भरा नहीं।
हमें तेरी याद दिलाते हैं।

वो घर की छत, 
जो मेरे सामने थी। 
वो स्कूल का कक्ष, 
जो ख़ाली रहता था। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो कॅाफी का कप,
जो तुमने छुआ था। 
वो लाल सा फूल, 
जो तुमने दिया था।
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो पहला पत्र, 
जो तुमने लिखा था। 
वो पहला वाक्य, 
जो मैंने सुना था।
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो किताब का पन्ना, 
जो तस्वीर तेरी रखता था। 
वो स्याही का पैन, 
जो ख़त लिखा करता था। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो पानी पुरी, 
जो तीखी थी। 
वो प्याज़ कचौड़ी,
जो मीठी थी। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो घड़ी,
जो तेरा इंतज़ार करती थी।
वो बस, 
जो तेरे घर से गुज़रती थी।
हमें तेरी याद दिलाते हैं।

वो बरसात, 
जो हमें भिगो गई। 
वो लहर, 
जो हमें डुबो गई। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो आँधी, 
जो तुम्हें गुमशुदा कर गई।
वो काली रात,
जो हमें अलग कर गई। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

वो मिट्टी का घर,
जो उस रात बह गया था। 
वो रिश्तों का बंधन,
जो उस रात टूट गया था। 
हमें तेरी याद दिलाते हैं। 

आज वो,
जो तुम्हारी याद दिलाते हैं। 
हमें अपने पास पाते हैं।
हमारा मन बहलाते हैं।
और हम 
बस यूँ ही जिये जाते हैं।

---किशन सर्वप्रिय 

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