Friday 9 October 2015

सोचते सोचते

सोचते सोचते
सोचा की
कुछ करने की
सोचते हैं।
बस फिर
सोचने लगा।

सोचता रहा,
सोचता रहा
और खूब सोचा,
पर बहुत देर तक
कुछ सोच नहीं सका
तो सोचा,
दुबारा सोचते हैं।
और फिर
सोचने लग गया।

जैसे ही
सोचने लगा
तो सोचा की
क्यूँ सोचा जाये।
अगर
सोचा भी जाये तो
क्या सोचा जाये।
चलो कुछ अच्छा ही
सोचा जाये।

अच्छा सोचते सोचते
उस पल को
सोचने लगा,
जब
दोस्त सोचते थे।
तब हमने
सोचने की
कभी नही
सोची थी।
ठीक है
फिर अब भी
सोचने की
क्यूँ सोचूं।।

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