जहाँ दौलत-शोहरत का खुमार है।
वहाँ पैसा जीवन का आधार है।।
इंसानियत का सस्ता बाज़ार है।
हैवानियत का खुला दरबार है।।
जिंदगी... बेरोजगार है।
जनता साली बीमार है।।
यहाँ जो लाचार है।
होता उस पर अत्याचार है।।
जिसकी बातोँ का न आधार है।
वही तो सरकार है।।
हर कोई करता यहाँ पुकार है।
भरता ना हुंकार है।।
मुझे तो डेंगू बुखार है।
पर भगवान भी लाचार है।।
मेरा इससे क्या सरोकार है।
आज का यही सुविचार है।।
--- किशन सर्वप्रिय
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