Friday 16 October 2015

मन मतंग

ये
गुमनाम जिंदगी
अनजान चेहरा
बदनाम किस्मत
सुनसान अंधेरा...।
है फिर भी मेरा
सपना सुनहरा...।।

ये
पत्थर मूरत
बेजान सूरत
सर्वत्र बसेरा
अनृत रूप तेरा...।
है फिर भी मेरा
सपना सुनहरा...।।

ये
मन मतंग
तन तुरंग
अनंग इच्छा
उमंग सवेरा...।
है इसीलिए मेरा
सपना सुनहरा...।।

---किशन सर्वप्रिय
(मतंग-मदमस्त हाथी, तुरंग-बलवान घोडा, अनंग-मौजमस्ती, अनृत-झूंठ)

Friday 9 October 2015

सोचते सोचते

सोचते सोचते
सोचा की
कुछ करने की
सोचते हैं।
बस फिर
सोचने लगा।

सोचता रहा,
सोचता रहा
और खूब सोचा,
पर बहुत देर तक
कुछ सोच नहीं सका
तो सोचा,
दुबारा सोचते हैं।
और फिर
सोचने लग गया।

जैसे ही
सोचने लगा
तो सोचा की
क्यूँ सोचा जाये।
अगर
सोचा भी जाये तो
क्या सोचा जाये।
चलो कुछ अच्छा ही
सोचा जाये।

अच्छा सोचते सोचते
उस पल को
सोचने लगा,
जब
दोस्त सोचते थे।
तब हमने
सोचने की
कभी नही
सोची थी।
ठीक है
फिर अब भी
सोचने की
क्यूँ सोचूं।।

Sunday 4 October 2015

जिंदगी... बेरोजगार है!


जहाँ दौलत-शोहरत का खुमार है।
वहाँ पैसा जीवन का आधार है।।

इंसानियत का सस्ता बाज़ार है।
हैवानियत का खुला दरबार है।।

जिंदगी... बेरोजगार है।
जनता साली बीमार है।।

यहाँ जो लाचार है।
होता उस पर अत्याचार है।

जिसकी बातोँ का न आधार है।
वही तो सरकार है।। 

हर कोई करता यहाँ पुकार है।
भरता ना हुंकार है।।

मुझे तो डेंगू बुखार है।
पर भगवान भी लाचार है।।

मेरा इससे क्या सरोकार है।
आज का यही सुविचार है।।

--- किशन सर्वप्रिय


हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...