Thursday 30 June 2016

नफरत है मुझे, तहजीब सिखाने वालों से


नफरत है मुझे,
     तहजीब सिखाने वालों से,
        पत्थर के घर बनाने वालों से।
 वो बचपन था,
     जब सब कुछ मिल जाया करता था,
        बस चीखने चिल्लाने से।।

रो पड़ता हूँ, जब मैं...

रो पड़ता हूँ
जब मैं
अपने आपको बाजार में बिकता देखता हूँ
सेब के भाव टमाटर को बिकता देखता हूँ
सोने के भाव दाल को बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
डिग्री को रद्दी में बिकता देखता हूँ
मंत्री को गद्दी में बिकता देखता हूँ
वोट को नोट में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
किस्मत को ताबीज में बिकता देखता हूँ
मेहनत को कौड़ियों में बिकता देखता हूँ
जज्बातों को रुपियों में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
मासूमियत को गलियों में बिकता देखता हूँ
इंसानियत को कोठे पर बिकता देखता हूँ
भगवान को मंदिर में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
जमीर को कागज में बिकता देखता हूँ
मजदूर को रोटी में बिकता देखता हूँ
पानी को बोतल में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ, जब मैं...
अपने आपको बाजार में बिकता देखता हूँ 


---किशन सर्वप्रिय 

Wednesday 29 June 2016

दीवारों को ढहाने की जरुरत है...

घरों के अंदर भी
कई दीवारें हैं।
दीवारों में
कई दरारें हैं।
दरारों में
रिसता पानी है।
हर घर की
यही कहानी है।

मम्मी की पापा से
पापा की भैया से
तकरारें हैं।
हर किसी की
हर किसी से
शिकायत हजारें हैं।
घुटन में पिसता
हर रिश्ता है।
हर घर का
यही किस्सा है।

दीवारों को
ढहाने की जरुरत है।
रूठों को
मनाने की जरूरत है।
रिश्तों को
बचाने की जरूरत है।

जरुरत है तो
गलतफहमियां मिटाने की
खुलकर बातें बताने की
अपनों को अपनाने की
घर को घर बनाने की।
---किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...