तहजीब सिखाने वालों से,
पत्थर के घर बनाने वालों से।
वो बचपन था,
जब सब कुछ
मिल जाया करता था,
बस चीखने चिल्लाने से।।
हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...