Thursday 30 June 2016

रो पड़ता हूँ, जब मैं...

रो पड़ता हूँ
जब मैं
अपने आपको बाजार में बिकता देखता हूँ
सेब के भाव टमाटर को बिकता देखता हूँ
सोने के भाव दाल को बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
डिग्री को रद्दी में बिकता देखता हूँ
मंत्री को गद्दी में बिकता देखता हूँ
वोट को नोट में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
किस्मत को ताबीज में बिकता देखता हूँ
मेहनत को कौड़ियों में बिकता देखता हूँ
जज्बातों को रुपियों में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
मासूमियत को गलियों में बिकता देखता हूँ
इंसानियत को कोठे पर बिकता देखता हूँ
भगवान को मंदिर में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ
जब मैं
जमीर को कागज में बिकता देखता हूँ
मजदूर को रोटी में बिकता देखता हूँ
पानी को बोतल में बिकता देखता हूँ।

रो पड़ता हूँ, जब मैं...
अपने आपको बाजार में बिकता देखता हूँ 


---किशन सर्वप्रिय 

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