Sunday 6 August 2017

मचलता है...ये मनचला मन

मचलता है...
ये मनचला मन
कहता है
चल कहीं, दूर चल
पंक्षी बन
अनंत गगन में उड़
क्यूँ डरता है
उड़ने से
तू पंख फड़फड़ाने से
बस पंख खोल तो सही
खुद ब खुद उड़ जायेगा
अथाह गगन भी
छोटा पड़ जाएगा
तू हाथ किसी के
न आएगा
ये जग,
ये जग भी
तेरे किस्से सुनायेगा
ये मनचला मन
कहता है
चल कहीं, दूर चल।।

---किशन सर्वप्रिय 

सागर कितना दूर है

बह रहा हूँ मैं,
पत्ते की तरह,
नदी की धार में।
पता नही
सागर कितना दूर है।।

---किशन सर्वप्रिय 

शायराना जिंदगी

सोचा न था,
जिंदगी
इस कदर
शायराना हो जायेगी।

स्टेशन
पहुँचने से पहले
गाड़ी रवाना हो जायेगी।

प्लेटफार्म पर खड़ी
गजल से
मुलाकात हो जायेगी।

आँखों की
आँखों से
गुजारिश-ए-गुफ्तगू हो जायेगी।

सिग्नल होते ही
दिल्ली से
चंडीगढ़ की
ट्रेन आ जायेगी।

और फिर
वो मुस्करायेगी,
पलकें झुकायेगी
और
चली जायेगी।

---किशन सर्वप्रिय 

पता नही कर पाता हूँ, उसका पता

पता नहीं क्यों
मैं उसकी ओर
खिंचा चला जाता हूं।

पता नहीं
वह मुझे बुलाती है
या मैं चला जाता हूं।

किताबों की पंक्तियों के बीच
पढ़ते पढ़ते ही खो जाता हूँ,
पता नही मैं
कहाँ गुम हो जाता हूँ।

खबरों के दरिया में
तैर कर भी
डूब जाता हूँ।
पता नही क्यूँ
पता नही कर पाता हूँ
उसका पता।।

---किशन सर्वप्रिय 

इस दुनिया का दस्तूर निराला

इस दुनिया का दस्तूर निराला
जहां भजते लोग मंदिर में माला,
उनको पता नही है क्या?
यहाँ कोई नही है बचने वाला।

हाथ में लिये तुलसी की माला
जो करते यहाँ घोटाला,
उनको पता नही है क्या?
पों का माल पों में है जाने वाला।

जिनका चेहरा है भोला भाला
यहाँ रखते हैं मन काला,
उनको पता नही है क्या?
चेहरे से कुछ नही है छुपने वाला।

यहाँ अच्छे लोगों का भी है हाल निराला
रहते हैं लगा मुंह पर ताला,
उनको पता नही है क्या?
मनुष्य जीवन फिर नही है मिलने वाला।

---किशन सर्वप्रिय 

इतना भी न डूबो इश्क़ में

इतना भी न डूबो
इश्क़ में
की तैर न सको।
बचा के रखना
दिल का कोना कोई,
ताकि कबाड़ी के
काम तो आ सको।।

---किशन सर्वप्रिय 

दिल्ली-ए-बेहाल

कोई अगर
सुबह के समय
दिल्ली में
ट्रेन की खिड़की से बाहर
ट्रैक का नजारा देख ले तो
सब पोल खुल जाती है।
स्वक्षता अभियान की
शौचालय निर्माण की
केजरी सरकार की
PM मोदीजी की
भारत महान की।

हम विदेशों में आर्थिक मदद पहुंचाते हैं
कितने अरबों खरबों की
पर आँख बंद कर लेते हैं दिल्ली की गलियों में।
वाह रे
मेरा देश बदल रहा है...
खुले में शौच कर रहा है।।

---किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...