बह रहा हूँ मैं,
पत्ते की तरह,
नदी की धार में।
पता नही
सागर कितना दूर है।।
---किशन सर्वप्रिय
पत्ते की तरह,
नदी की धार में।
पता नही
सागर कितना दूर है।।
---किशन सर्वप्रिय
हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...
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