Sunday 6 August 2017

पता नही कर पाता हूँ, उसका पता

पता नहीं क्यों
मैं उसकी ओर
खिंचा चला जाता हूं।

पता नहीं
वह मुझे बुलाती है
या मैं चला जाता हूं।

किताबों की पंक्तियों के बीच
पढ़ते पढ़ते ही खो जाता हूँ,
पता नही मैं
कहाँ गुम हो जाता हूँ।

खबरों के दरिया में
तैर कर भी
डूब जाता हूँ।
पता नही क्यूँ
पता नही कर पाता हूँ
उसका पता।।

---किशन सर्वप्रिय 

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