Friday 28 March 2014

हम - तुम

हमने देखा, तुमने देखा 
हम दोनों ने देखा 
हम भी देखते रहे, तुम भी देखते रहे 
हम दोनों देखते रहे 
हमने कहा, तुमने कहा 
हम दोनों ने कहा 
मुझे पसन्द है, मुझे पसंद है 

प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर थी 
मानो उसी की तलाश थी 
लगा आज तो मिल ही जायेगी 
हमने पूछा, तुमने पूछा  
क्या लोगे?
दुकानदार बोला- साहब जी, मैड़म जी
ये पेन्टिंग तो हमारे पास एक ही होगी 
हमने देखा, तुमने देखा 
दोनों ने मुड़कर देखा
दुकानदार फिर बोला
आपस में फैसला करलो 
यही अच्छा होगा जी 

हमने कहा, तुमने कहा 
हम दोनों ने कहा 
पहले आपने देखा, पहले आपने देखा 
पहले आपने कहा, पहले आपने कहा 
पसंद तो हमको भी है, पसंद तो तुमको भी है
पर आप ले लीजिये जी, पर आप ले लीजिये जी

---किशन सर्वप्रिय 

Thursday 27 March 2014

अब, फिर कब

पिछली बार 
'कांग्रेस' का भ्रस्टाचार,
अबकी बार 
'मोदी' की सरकार,
देखा बार-बार 
'आप' का अहंकार,
हर बार 
बहुत हुआ अत्याचार,

कब करेगी 
जनता प्रहार?
कब भरेगी
जनता हुंकार?
कब लगेगा 
जनता दरबार?
कब होंगे 
सपने साकार?

क्यूँ है
जनता लाचार?
क्यूँ है 
जनता बीमार?
क्यूँ है
घोटालों का अंबार
क्यूँ हैं 
समस्याएं हजार?
क्या सन 57 में 
क्रांति लेगी आकार?

कर ही लो
इस बार, दो चार, 
इस बार नहीं
तो किस बार?

नमो-नमो सब करें, जन-जन करे न कोय।
इलेक्शन आते ही, नेता टप -टप आंसू रोय। 

 पाँच साल खूब लूटा, इनसे बचा न कोय 
इलेक्शन आते ही, जनता मतदाता होय। 

                                                               ---किशन सर्वप्रिय 



आज और कल

आज 

फूल ने कहा भँवरे से, कब तक मँडराओगे। 
मुरझाने के बाद, कल तो उड़ जाओगे। 

कुंए ने कहा प्यासे से, कब तक बहाओगे। 
सूखने के बाद, घाट तो छोड़ जाओगे।

छाँव ने कहा राहगीर से, कब तक ठहरोगे। 
धूप आने के बाद, तुम तो चले जाओगे।

प्यार ने कहा दोस्ती से, कब तक निभाओगे।
बरसात जाने के बाद, वेबफ़ा हो जाओगे। 

मैं ने कहा नेता से, कब तक बनाओगे। 
चुनाव के बाद, सारा खून चूंस जाओगे।

लेकिन कुछ दिन बाद ...... 

कल 

धूप ने कहा राहगीर से, कब तक भागोगे। 
प्रदूषण होने के बाद , धूप से भी जाओगे ।

जनता ने कहा नेता से, कब तक सुलाओगे। 
एक दिन क्रांति के बाद, सब मिट जाओगे। 

नदी ने कहा झरने से, कब तक इतराओगे। 
समतल आने के बाद, बस पानी रह जाओगे। 

चांदनी ने कहा सितारों से, कब तक जगमगाओगे। 
चाँद निकलने के बाद, सब गायब हो जाओगे।

बिजली ने कहा अम्बानी से, कब तक एसी चलाओगे। 
वायुमण्डल समाप्ति के बाद, जान से भी जाओगे।  


                             ---किशन सर्वप्रिय 

Monday 24 March 2014

चाँदनी रात हो

हाथों में हाथ हो
सितारों का साथ हो
चाँदनी रात हो
फिर क्या बात हो।

लम्बे काले बाल हों
गोरे गोरे गाल हों
लिपस्टिक लाल हो
मदमस्त चाल हो
फिर क्या हाल हो।

बाली से सजे कान हों
चहेरे पर मुस्कान हो
तू ही मेरी जान हो
तू ही मेरी पहचान हो।

दिन कि तकरार हो
रात का प्यार हो
फिर मिलने का इकरार हो
बस तुम्हारा ही इन्तजार हो।

हथेली तुम्हारी हो
कलम हमारी हो
अल्फाज तुम्हारे हों
राइटिंग हमारी हो
फिर देखो क्या शायरी हो।  

जहर पीना मुस्किल न हो
अगर स्ट्रा तुम्हारी हो,
फांसी का भी दर्द न हो
अगर चुनरी तुम्हारी हो। 

   ---किशन सर्वप्रिय 

Friday 21 March 2014

चींटी, मच्छर की लड़ाई

चींटी, मच्छर में हुई लड़ाई 
माननीय जज थे कबीर भाई 
खूब सारी भीड़ देखने को आई 
चींटी, मच्छर ने पूरी दम लगाई 
कभी चींटी ऊपर आई 
तो कभी मच्छर ने पछाड़ लगाई 
फैसला करने में हुई कठिनाई।

कबीर भाई को एक बात समझ में आई
उन्होंने भी चालाकी दिखाई
काटने की कम्पटीशन थी करवाई
चींटी ने मच्छर, मच्छर ने चींटी काट खाई
बेहोश दोनों को एक घंटे में होश आई
कबीर और मुस्किल में पड़ गए भाई
किसने ज्यादा काटा ये कैसे पता चल पाई
यह बात कबीर के समझ नहीं आई।

कबीर ने काटने की कम्पटीशन फिर करवाई
लेकिन खुद को काटने की कंडीशन लगाई
पहले चींटी के काटने की टर्न आई
चींटी कबीर को जोर से काट खाई
कबीर ने हाथ को मलते हुए फिर हिम्मत दिखाई।

अब मच्छर के काटने की बारी थी आई
मच्छर ने जोरों से डंक गड़ाई
कम से कम दो एम एल खून चूंस गया भाई
इतने में ब्रेक कि चाय थी मंगवाई
कबीर ने मूर्छा कि इच्छा जताई
आने लगी थी बेहोशी कि अंगड़ाई
कबीर को उलटी भी करवाई

हालत बिगड़ते देख आयोजकों ने
चारपाई थी मंगवाई
एम्बुलेंस भी कॉल करवाई,
आते-आते डाक्टर ने
चार-पांच  इंजेक्शन कबीर के लगाई
टेस्ट करने कि पर्ची भी थमाई
थमाते थमाते हालत नाजुक थी बताई
कबीर दर्द से बार-बार कराहि।

जल्दी ही टेस्ट रिपोर्ट आई
कबीर की मुस्किल और थी बढ़ाई
कबीर कि जान आफत में आयी
कबीर कि बीमारी
 डॉक्टरों ने लाईलाज बताई
आयोजक क्या करें भाई
पुलिस भी मौके पर आई
पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज़ कराई।

इतने में रिजल्ट जानने
मच्छर कि माँ भी वहाँ आई
साथ में पुरे गांव को साथ लाई
रिजल्ट न बताने तक
जान कि धमकी थी सुनाई
अब क्या था भाई
डाक्टर ने एक इंजेक्शन लगाई
एक मच्चर ने डंक चुबाई
डाक्टर ने दूसरा इंजेक्शन लगाई 
दूसरे मच्छर ने डंक चुबाई 
डाक्टर ने तीसरी दी दवाई 
तीसरे मच्चर ने घाव में ही डंक गढ़ाई।

पुलिस उस मच्छर को पकड़ नही पाई
किसके कटाने से मौत हुई 
यह बात आज तक पता नहीं चल पाई
अगले महीने कोर्ट में है सौंवी सुनवाई  
इसी बीच चींटी मच्छर के 
शादी की बात भी सुनने में आई
कुछ लोगों ने उसमें मिठाई खाई
तो कुछने फ़ोटो भी खिंचवाई। 


अब क्या ???
कबीर भाई राम राम जपा, पर बचा सका न कोय। 
क्या करें डॉक्टर, जब मच्छर के काटने से मौत होय। 


---किशन सर्वप्रिय 





देखो तमाशा जनता का

एक दिन आया 
इलेक्शन का भूत 
खूब सजा था पोलिंग बूथ 
जनता लड़ रही थी 
नेता जीत रहे थे 
हम तमाशा देख रहे थे।  

एक दिन आया 
इलेक्शन का नतीजा
 मनोरंजन का समय खूब बीता
जनता ताली बजा रही थी 
नेता मिठाई खा रहे थे 
 हम तमाशा देख रहे थे। 

एक दिन आया 
इलेक्शन वादों को पूरा करने का दिन 
नेता ने कहा पहले पैसे तो लूं गिन 
जनता चिल्ला रही थी 
नेता पैसा बना रहे थे 
हम तमाशा देख रहे थे। 

एक दिन आया 
सरकार का हनीमून समय बीता 
विपक्ष ने शिर खूब पीटा 
जनता वहीँ पड़ी रो रही थी 
नेता वीस गुना कमा चुके थे 
हम तमाशा देख रहे थे। 

एक दिन आया 
हमने भी सरकार बनाने कि ठानी 
जनता ने हमारी बात खूब मानी 
अब हमारी दुकान चल गयी 
जनता फिर उल्लू बन गयी 
लो देखो तमाशा जनता का।

---किशन सर्वप्रिय 

70% का दुःख

 बादलों को देखा तो
सपने हजारों थे,
खेत को देखा तो 
गम हजारों थे,
नेता को देखा तो
वादे हजारों थे, 
बैंक को देखा तो 
कर्ज हज़ारों थे,
पडोसी को देखा तो 
झगड़े हजारों थे,
काया को देखा तो 
रोग हजारों  थे। 

बस नहीं  था तो 
बादलों  में पानी 
खेत में फसल 
कन्धों पे हल 
घर में अनाज,
बस नहीं  था तो 
परिवार का सुख 
काया पे चमक, 
बस नहीं  था तो 
तन पर कपडे 
शिर पे छाँव 
पेट में अन्न 
बैंक में धन 
जीने का मन। 

कठिन हो गया था 
बादल का बरसना 
खेत का लहलाना
अन्न का उगना 
पेट का भरना,
कठिन हो गया था 
पडोसी का साथ आना 
परिवार का सुख पाना 
नेता का सही चुना जाना,
कठिन हो गया था 
बैंक का कर्ज चुकाना 
बहिन कि डोली सजाना 
बापूजी कि अर्थी बनाना 
नुक्ता का पंडित जिमाना, 

अब ना रहा था 
जीने का कोई बहाना 
लेकिन आसान ना था....  
मर पाना। 
जहर 
कि गोली सस्ती न थी 
फांसी 
 के लिए रस्सी न थी 
कुंए
 के पानी में गहराई न थी 
बिल्डिंग 
कि ऊँची हाइट न थी 
रेल 
कि पटरी बिछाई न थी 
बिजली 
कभी देखी न थी 
केरोसिन 
तो दीपक में भी न थी 


हमारे मरने कि कीमत भी 
हमें जीने पर मजबूर कर रही थी। 


---किशन सर्वप्रिय 

Thursday 13 March 2014

मैं सिग्नल कहलाता हूँ

मैं पटरी पर रहता हूँ
और हमेशा रहता हूँ 
दशकों से खड़ा हूँ 
और सजग अडा हूँ। 
किसी को लाल,
किसी को पीला,  तो 
किसी को हरा रंग
 दिखाता हूँ। 
यात्रियों कि सुरक्षा,
समय कि शीघ्रता
का बेडा उठाता हूँ। 
मैं सिग्नल कहलाता हूँ। 
मैं सिग्नल कहलाता हूँ। 


मैं पटरी पर रहता हूँ,
और सबसे कम खाता हूँ ,
फिर भी ... 
गाली ज्यादा पाता हूँ,
और सबसे पाता हूँ।
यात्री,जिनको सुरक्षित घर पहुँचाता हूँ,
उनसे भी देरी के लिए खाता हूँ। 
दुर्घटना  से देरी भली,
मालिक जानता  है ,
फिर भी 
गाली रोज सुनाता है। 
बचपन से सिखाया जाता है,
सुरक्षा का रंग लाल होता है,
फिर भी 
लाल रंग की ही सजा पता हूँ। 
मैं कमजोर तो नही,
पर मजबूर हूँ ,
क्योंकि 
लोगों कि जान का पहरेदार हूँ। 
वरना कोई यूँ न सुनाता,
और मैं चुप भी न रहता।
हाँ हाँ मैं चुप रहता हूँ , 
इसीलिए तो 
 मैं सिग्नल कहलाता हूँ। 
मैं सिग्नल कहलाता हूँ। 

                                                                               … किशन सर्वप्रिय  

Wednesday 12 March 2014

तिरंगा ऊँचा

अल्लाह के बन्दे ,
अंधे हैं हम। 
रोजाना चोरी, 
करते हैं हम। 
छोटी-छोटी बातों पे,
झगड़ते हैं हम। 
खास पड़ौसी से,
लड़ते हैं हम।।  

लेकिन 
देश प्रेम,
 रखते हैं हम। 
बलिदान लहू का,
करते हैं हम। 
तिरंगा ऊँचा,
रखते हैं हम। 


--- किशन सर्वप्रिय 

अफ़सोश होता है


अफ़सोश होता है ऐसा खेल देखकर, जिसमें हमेशा सिर्फ़ एक ही पक्ष की हार होती है| खेल ऐसा जिसका परिणाम पहले से घोषित है-"जनता की हार", खिलाड़ी स्थायी हैं-"अपराधी,परिवारवादी, व जातिवादी"| खेल का विजेता या तो संप्रदायिक होगा या युवराज| लेकिन निर्मम हत्या, देश की जनता की ही होगी|
प्रधानमंत्री का पद, सरकार का पर्यायवाची बन गया है| सरकार किसकी बनेगी? कौन बनाएगा? ये तो पता नही है, लेकिन प्रधानमंत्री कौन होगा? जगजाहिर है| दुख होता है यह सोच कर कि चुनाव सिर्फ़ प्रधानमंत्री के नाम के लिए लड़ा जा रहा है या देश के विकाश के लिए; विरोधी की कमियों को उजागर करने के लिए या अपनी नीतियों के प्रचार के लिए? किसी का भी भाषण सुनलें- खुद पर कम, विरोधी पर ज़्यादा केंद्रित होता है|
यूँ तो जनता जागरूक है, तार्किक है| लेकिन इन मदारियों के खेल में भ्रमित हो हि जाती है| अंत तक निर्णय नही कर पाती है कि- क्या उस खिलाड़ी का समर्थन करे जो किसी का बेटा है? या उसका जो सिर्फ़ एक राज्य का मुखिया है| एक को राजनीति की समझ नही है तो दूसरे को देश-दुनिया की| जनता बेचारी करे तो करे क्या? अंधेरे में रास्ते तो गुम हो ही जाते है|
जनता को फूल के पत्तों की तरह बिखेरा हुआ है| विकास का ख्याली पुलाव पकाया जा रहा है| डर लगता है जनता का यह दिवा स्वप्न देख कर, जिसमें सिर्फ़ वादे-ही-वादे हैं| मौंके-पे-मौंके, तारीख-पे-तारीख देने के बाद भी जनता-दरबार का फ़ैसला नही आ रहा है|

नेताओं की रणनीति



          

मुझे क्यूँ समझ नही आती,         

             इन नेताओं की रणनीति|

मुझे तो याद भी नही रहती,            

           इन नेताओं की रणनीति|

मुझे नही पता इस बार की,

                       इन नेताओं की रणनीति|

मुझे कोई क्यूँ नही बताता,  

                   इन नेताओं की रणनीति|

क्या असल में कुछ है भी, 

                   इन नेताओं की रणनीति|


किशन सर्वप्रिय 

हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...