Tuesday 17 November 2015

छप्पन इंच का सीना

मुझे याद है तेरा वादा
तूने पूरा किया न आधा
किया क्यों इतना ज्यादा
जब नहीं था तेरा इरादा

देख लिया...
तेरे छप्पन इंच का सीना
और अच्छे दिनों का जीना
अरे बाबू जरा विदेशी चश्मा उतार कर देखो
यहां छप्पन इंच के छः हैं और छः के छप्पन

तेरे हर जुमले को गौर से सुना है
तेरे हर पल को तेरे संग जिया है
लेकिन अब तूने ये क्या किया है?
मुझे छोड़ गाय को अपना लिया है!

लगता है...
सुर्खियों में रहना तेरी आदत हो गई है
सब भूल जाना मेरी इबादत हो गई है

---किशन सर्वप्रिय 

Monday 2 November 2015

क्या हुआ अगर मुश्किल बडी है तो...

मुश्किल बडी हो जाती है तब,
जब हम छोटी छोटी मुश्किलों से बचते हैं।
जैसे सौ झूंठ बोलने पडते हैं तब,
जब एक झूंठ छुपाने की कोशिश करते हैं।।

मुश्किलों से बचके नही,
मुश्किलों से लडके ही लोग इतिहास रचते हैं।
जैसे लहरों से डरके नही,
लहरों को काटके ही पतवार किनारे लगते हैं।।

क्या हुआ अगर मुश्किल बडी है तो,
आओ हम मिलकर मुकाबला करते हैं।
अगर मुश्किल बडी है तेरी भी मेरी भी,
तो आओ डटकर मुकाबला करते हैं।।

---किशन सर्वप्रिय

Friday 16 October 2015

मन मतंग

ये
गुमनाम जिंदगी
अनजान चेहरा
बदनाम किस्मत
सुनसान अंधेरा...।
है फिर भी मेरा
सपना सुनहरा...।।

ये
पत्थर मूरत
बेजान सूरत
सर्वत्र बसेरा
अनृत रूप तेरा...।
है फिर भी मेरा
सपना सुनहरा...।।

ये
मन मतंग
तन तुरंग
अनंग इच्छा
उमंग सवेरा...।
है इसीलिए मेरा
सपना सुनहरा...।।

---किशन सर्वप्रिय
(मतंग-मदमस्त हाथी, तुरंग-बलवान घोडा, अनंग-मौजमस्ती, अनृत-झूंठ)

Friday 9 October 2015

सोचते सोचते

सोचते सोचते
सोचा की
कुछ करने की
सोचते हैं।
बस फिर
सोचने लगा।

सोचता रहा,
सोचता रहा
और खूब सोचा,
पर बहुत देर तक
कुछ सोच नहीं सका
तो सोचा,
दुबारा सोचते हैं।
और फिर
सोचने लग गया।

जैसे ही
सोचने लगा
तो सोचा की
क्यूँ सोचा जाये।
अगर
सोचा भी जाये तो
क्या सोचा जाये।
चलो कुछ अच्छा ही
सोचा जाये।

अच्छा सोचते सोचते
उस पल को
सोचने लगा,
जब
दोस्त सोचते थे।
तब हमने
सोचने की
कभी नही
सोची थी।
ठीक है
फिर अब भी
सोचने की
क्यूँ सोचूं।।

Sunday 4 October 2015

जिंदगी... बेरोजगार है!


जहाँ दौलत-शोहरत का खुमार है।
वहाँ पैसा जीवन का आधार है।।

इंसानियत का सस्ता बाज़ार है।
हैवानियत का खुला दरबार है।।

जिंदगी... बेरोजगार है।
जनता साली बीमार है।।

यहाँ जो लाचार है।
होता उस पर अत्याचार है।

जिसकी बातोँ का न आधार है।
वही तो सरकार है।। 

हर कोई करता यहाँ पुकार है।
भरता ना हुंकार है।।

मुझे तो डेंगू बुखार है।
पर भगवान भी लाचार है।।

मेरा इससे क्या सरोकार है।
आज का यही सुविचार है।।

--- किशन सर्वप्रिय


Wednesday 24 June 2015

शिद्दत-ए-मोहब्बत

इश्क-ए-मोहब्बत,
काश, खुदा-ए-किस्मत
रूबरू हो जाती।

कसम-ए-मोहब्बत
कहानी हीर-रांझा की ,
फिर दोहराई जाती।



बुलन्द-ए-किस्मत, रांझा की
जो हीर मिली।
वर्ना ........
शिद्दत-ए-मोहब्बत हमने भी की,
और बीबी मिली। :)

---किशन सर्वप्रिय 

Wednesday 20 May 2015

खुदा की खुदाई


"जिसने खुदा चाहा, उसे खुदाई मिली;
जिसने चाही खुदाई, उसे खुदा मिला।"

तथ्यार्थ यह है कि वे लोग जो भगवान भरोसे भजन करते रहते हैं, उन्हे मज़दूरी और ग़रीबी से रूबरू होना पड़ता है। वहीं, वे लोग जो मेहनत परिश्रम करते हैं, उन्हे भगवान व उनकी कृपा सहित समस्त सांसारिक फल यथोचित मिल जातें हैं।

Monday 11 May 2015

खुशियाँ खरीदने लगा हूँ

खुशियाँ, खरीदने जब से लगा हूँ,
जिंदगी मंहगी हो गयी है।

वर्ना जो शुकून.....

पेड़ की छाँव और
चारपाई की नींद में आता था....

लस्सी के गिलास और
मिस्सी रोटी में आता था....

चौदह इंच की टीवी और
चित्रहार, रंगोली में आता था....

माँ के दुलार और
बहिन के प्यार में आता था....

आजकल,
आता ही नहीं।
पता नहीं क्यूँ?
मैं ....
बाजार में भटकता रहता हूँ!!!

---किशन सर्वप्रिय 

Wednesday 28 January 2015

मन की बात

मैं इन बडे लोगों की
महफिल में क्या कहूँ।
जाम पीना मुझे आता नही।
खाली बातें मैं बनाता नही।

करता हूँ, करते जाता हूँ।
विना पंख उडना, मुझे आता नही।। "

Saturday 24 January 2015

जीवन सार (2)

ये पंक्तियाँ, मुझे तब दोहराने का मन करता है। जब एक सेवा निवृत्त व्यक्ति कहता है की, मैंने, अपने सेवा काल में अपनों से, अपने आप से और समाज से दूरियाँ बना ली थी। आज, जब मैं सेवा निवृत्त हो चुका हूँ तो, घर का आँगन भी, तो कॉलोनी का बगीचा भी; रेल का सफर भी, तो जिंदगी की डगर भी मुझे अकेले चलना पड़ता है। मैं, अब अपनों को अपनाना चाहता हूँ, पर किसी को मेरे लिए समय ही कहाँ।

सुन, तेरा रास्ता वहीँ से गुजरता है, जिससे मैं गुजर चुका हूँ। ये भी बता देता हूँ, आगे बहुत मोड़ आयेंगे। अभी तक जो, तू पगडण्डियाँ पकड़ता आया है, उसको छोड़ दे। जब मौका मिला है, सही रास्ते जाने का, तो एक लकीर बना और सबको उस पर ला। सच कहता हूँ कल तू मुस्कुराता मिलेगा, अपनों की मुस्कुराहट पर। वरना, हँस भी नही पायेगा, अनंत के एकांत में।

जो दुनिया देखी थी,
       बुरी लगती थी।
पर दुनिया तो,
       मुझसे बनती थी।
जब मैंने…...... जब मैंने...
अपने आप को बदल दिया।
तो दुनिया बदल गयी।

जरुरत
खुद को बदलने की थी,
कुछ करने की थी।
पर मैं पड़ौसी बदलता रहा।

सार समझ में तब आया,
जब खुद को.………
मेले में.……………
खड़ा अकेला पाया।

--- किशन सर्वप्रिय

Sunday 4 January 2015

दिल की बातें

क्या करूँ उन आँखों का
जो तुमसे लड़ गयी,
क्या करूँ उन बातों का
जो तुमसे हो गयी,
अब तो आँखों की बातें
दिल में उतर गयी।

ये आँखों की बातें,
आँखों से कहने दो
यूँ न नजरें चुराओ तुम।
ये दिल की बातें,
दिल को समझने दो
यूँ न धड़कन बढ़ाओ तुम।
आज जो होना है,
होने दो
यूँ न शरमाओ तुम।
अब मान भी जाओ तुम।।

---किशन सर्वप्रिय 

जो होना है, होने दो

आज
जो होना है, होने दो।
घटना
घटती है तो, घटने दो।
समय
थमता है तो, थमने दो।
वादियाँ
महकती हैं तो, महकने दो।

मन
बहकता है तो, बहकने दो।
गुफ़्तगू
होती है तो, होने दो।
अरमान
जगते हैं तो, जगने दो।
नजदीकियां
बढ़ती हैं तो, बढ़ने दो।
दूरियाँ
घटती हैं तो, घटने दो।

महक
फैलती है तो, फैलने दो।
सांसे
घुलती हैं तो, घुलने दो।
जुल्फें
बिखरती हैं तो, बिखरने दो।
लब
छूते हैं तो, छूने दो।
तन
दहकता है तो, दहकने दो।
जिस्म
 मिलते हैं तो, मिलने दो।
रिदम
बनती है तो, बनने दो।

मर्यादा
टूटती है तो, टूटने दो।
लाज 
उतरती है, तो उतरने दो।
जमाना
जलता है तो, जलने दो।

जिसको
जो कहना है, कहने दो।

आज न रोको हमें
आज न टोको हमें।
हमें मिल जाने दो,
तुम में घुल जाने दो।
ख्वाब जो देखे हमने,
पुरे हो जाने दो।
बस यही तमन्ना है,
यही इबादत,
यही मंजिल।

---किशन सर्वप्रिय

दिल की बातें


हर बार उलझ जाती हैं, आँखें मेरी

हर बार उलझ जाती हैं , आँखें मेरी। पता नही, क्यों? वो मुस्कुराती है पलके झुकाती है शरमाती है।। अपना पता बताये बगैर ही चली जाती है।। और फिर,...